चौधरी ब्रह्मप्रकाश जी की जीवनी
इस धरती पर जन्म लेना और अपनी खूबियों से देश – दुनियाँ का पथ प्रदर्शक बनना एवं अनंत युगों तक अपनी उपस्थिति दर्ज कराने वालों में दिल्ली के प्रथम मुख्यमंत्री,महँ स्वतंत्रता सेनानी एवं शेर -ए -दिल्ली जैसी उपाधियों से विभूषित चौधरी ब्रह्मप्रकाश का नाम बड़े ही आदर के साथ लिया जाता रहेगा।
चौधरी ब्रह्मप्रकाश जी का पदार्पण 16 जून 1918 को कीनिया की राजधानी नैरोबी में हुआ था।इनके पिता श्री चौधरी भगवान दास यादव दिल्ली के शकूरपुर गाँव के एक संपन्न किसान थे,जिनका नैरोबी में अपना व्यापार था।चौधरी ब्रह्मप्रकाश जी दिल्ली के श्रीराम कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स से स्नातक की शिक्षा प्राप्त की।इनमें बचपन से ही देशभक्ति की भावना विद्यमान होने के कारण 18 वर्ष की आयु में ही 1936 में विद्यार्थी जीवन में ही कांग्रेस में शामिल हो गए और स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े।इस महान सपूत ने देश को आजाद कराने में बहुत संघर्ष किया एवं पाँच बार जेल भी गए।
स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत दिल्ली में इन्होंने पथ प्रदर्शक की भूमिका निभाई एवं 1952 में दिल्ली के प्रथम एवं सबसे कम उम्र का मुख्य मंत्री बनने का गौरव प्राप्त किया।इन्होंने अपने मुख्यमंत्री काल में दिल्ली के विकास के लिए अनेकों योजनाओं को साकार रूप दिया।संसद में भी आपने चार बार दिल्ली का प्रतिनिधित्व किया एवं भारत सरकारमें कृषि,सिंचाई एवं सहकारिता मंत्री के रूप में उल्लेखनीय योगदान दिया।चौधरी ब्रह्मप्रकाश ने भूमि सुधर,पंचायती राज तथा सहकारिता के क्षेत्र में भी ऐतिहासिक कार्य किया।इन कार्यों के लिए उन्हें सहकारिता आंदोलन का जनक कहा जाता है।
चौधरी ब्रह्मप्रकाश अपने समय के दिल्ली के सबसे शक्तिशाली एवं प्रभावशाली नेता रहे।अदम्य साहस,निर्भीकता,आत्मढृढ़ता, लोकतान्त्रिक मूल्यों के प्रति पूर्ण निष्ठा,सिद्धांतों से कोई समझौता नहीं आदि उनके व्यक्तित्त्व की विशेषता थी।दिल्ली के विकास और अधिकरों के लिए तथा समाज के कमजोर एवं वंचित वर्गों के लिए इन्होंने जो संघर्ष किया उसके लिए इन्हें ” शेर -ए-दिल्ली ” ,” मुगले-आजम-दिल्ली “से सम्बोधित किया गया।
11 अगस्त 1993 को इस महान सपूत ने अपने नश्वर शरीर का परित्याग कर दिया ;किन्तु अपने यशरूपी काया से आज भी अपनी उपस्थिति हर जगह दिखा रहे हैं और युगों – युगों तक रहेंगे।
” ये माना कि मौत हमको मिटा देगी बहर से।
परन्तु मेरा यह नाम मिटाया ना जायेगा ।।”
” गए लाड़ले भारत माँ के, गाती जिनका सुयश भारती।
सजी शब्द कर्पुर उन्हीं की,एक अकिंचन रचित आरती।।”