सत्तर साल का दूल्हा
सत्तर वर्ष की उम्र पूरा करने के बाद एक बुड्ढा,
प्रत्येक एक वर्ष पर,अपनी ही पत्नी से शादी करता था—!
बिना किसी रोक-टोक के सारा कार्यक्रम संपन्न हो जाता,
और फिर अगले साल सब कुछ वैसे ही दोहराया जाता—!!
पूरे गांव में ये बात कौतुहल का विषय बन गई—–???
आखिर में जब एक व्यक्ति से नहीं रहा गया तो उसने पूछ ही लिया: –
बुढ़ऊ—ये क्या बात हुई,
कि तुम हर साल ब्याह करते हो—
हर साल फेरे लेते हो—-
बुड्ढा बोला:- ” बस एक ही शब्द ” सुनने की खातिर—–!!!!
” कौन सा शब्द—–“
वही जब पंडित जी कहते हैं कि——-
लड़के को बुलाओ
” बस ——कसम से मजा आ जाता है——!!!!
किस्मत का खेल
एक बार एक हसीन लड़की एक राजा के दरबार
में डांस कर रही थी ! ( राजा बदसूरत था )
निवेदन के बाद,राजा से,एक सवाल की
इजाजत तालाब की,राजा ने कहा कि पूछो !
लड़की ने कहा :-” जब खुदा हुस्न तक्शीम
कर रहा था,तो आप कहाँ थे ?”
राजा ने गुस्सा नहीं किया,बल्कि मुस्कुराते हुए कहा :
” जब तुम हुस्न कि लाइन में खड़ी हुस्न ले रही थीं,
तो मैं किस्मत की लाइन में खड़ा किस्मत ले रहा था
और आज तुम जैसी हुस्नवालियाँ मेरी गुलाम हैं।”
इसीलिए शायर ने कहा है –
” हुस्न “ना मांग ” नसीब “मांग ऐ दोस्त ” हुस्न “वाले
अक्सर ” नसीब ” वालों के गुलाम हुआ करते हैं–।”
बँटवारा बाप का
बँटवारा तो आपने जमीन -जायदाद का सुना होगा,
किन्तु इस घोर कलियुग में बाप का बँटवारा आपको
सुनकर थोड़ा अजीब लगे परन्तु सच है —
” पापा जी !पंचायत इकट्ठी हो गई,अब बँटवारा कर दो ।”
मोहन जी के बड़े बेटे नरेश ने रूखे अंदाज में कहा।
” हाँ पापा जी ! कर दो बँटवारा अब इकट्ठे नहीं रहा
जाता ” छोटे बेटे महेश ने भी उसी अंदाज में कहा।
पंचायत बैठ चुकी थी,सब इकठ्ठा हो गए थे ।
मोहन जी भी पहुंचे।
” जब साथ में निर्वाह न हो तो औलाद को अलग
कर देना ही ठीक है,अब यह बताओ तुम किस बेटे
के साथ रहोगे ?” सरपंच जी ने मोहन जी के कंधे पर
हाथ रख कर बड़े ही मार्मिक लहजे में पूछा ।
मोहन जी सोच में शायद सुनने की बजाय कुछ
सोच रहे थे।सोचने लगे वो दिन जब इन्हीं नरेश
हुए महेश की किलकारियों के बगैर एक पल भी
नहीं रह पते थे।वे बच्चे अब बहुत बड़े हो गए थे।
अचानक महेश की बात पर ध्यानभंग हुआ,
” अरे इसमें क्या पूछना,छः महीने पापा जी मेरे
साथ रहेंगे और छः महीने छोटे के पास रहेंगे।”
” चलो तुम्हारा तो फैसला हो गया,अब करें
जायदाद का बँटवारा ??? सरपंच जी बोले।
मोहन जी जो काफी देर से सर झुकाये सोच
में बैठे थे,एकदम से उठ कर खड़े हो गए
और क्रोध से आँखें तरेर कर बोले,
“अबे ओये सरपंच जी,कैसा फैसला हो गया ?
अब मैं करूँगा फैसला, इन दोनों लड़कों को
घर से बाहर निकाल कर।”
सुनो बे सरपंच,इनसे कहो चुपचाप निकालें घर से,
और जमीन जायदाद या संपत्ति में हिस्सा चाहिए तो
छः महीने बारी बारी से आकर मेरे पास रहें,और
छः महीने कहीं और इंतजाम करें अपना।
फिर यदि मूड बना तो सोचूंगा ।
“जायदाद का मालिक मैं हूँ ये सब नहीं।”
दोनों लड़कों और पंचायत का मुँह खुला
का खुला रह गया,जैसे कोई नई बात हो गई हो।
इसी नई सोच और नई पहल की जरुरत है आज
समाज में,जिससे बूढ़े माता -पिता को सम्मान
मिल सकेगा और वे सम्मान सहित अपना शेष
जीवन खुशहाल पूर्वक जी पाएंगे।
मधुर व्यवहार एवं शिष्ट आचरण का फल
एक राजा ने एक सपना देखा कि एक सिद्ध परोपकारी साधु उससे कह रहा था कि, बेटा ! कल रात को तुम्हें एक विषैला सांप काटेगा और तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी।वह सांप बाग़ के एक बरगद के पेड़ की जड़ में रहता है।सांप तुमसे पूर्व जन्म की शत्रुता का बदला लेना चाहता है।
सुबह होने पर राजा जब सोकर उठा और सपने की बात अपनी आत्मरक्षा के लिए क्या उपाय करना चाहिए ? इसे लेकर विचार करने लगा।सोचते-सोचते राजा ने निर्णय किया कि मधुर व्यवहार से बढ़कर शत्रु को जीतने वाला और कोई हथियार इस धरती पर नहीं है।राजा ने सांप के साथ मधुर व्यवहार करके उसके मन को बदलने का पक्का निश्चय किया।शाम होते ही राजा ने बरगद के पेड़ की जड़ से अपने महल में अपनी शय्या तक फूलों का बिछाबन बिछवा दिया और सुगन्धित जालों एवं इत्र का छिड़काव करवाया,मीठे दूध के कटोरे जगह -जगह रखवा दिया और सेवकों से कहा गया कि रात को सांप जब बिल से निकले तो कोई भी उसे किसी प्रकार से कष्ट न पहुंचाए|
रात को सांप अपने बिल से निकला और राजा के महल की तरफ चल दिया।सांप जैसे-जैसे महल की ओर बढ़ता गया और अपने लिए की गई स्वागत व्यवस्था से अत्यंत आनंदित होता चला गया। मुलायम बिछौने पर लेटता हुआ मनभावनी सुगंध का रसास्वादन करता हुआ और जगह-जगह मीठा दूध पीता हुआ आगे बढ़ता रहा ।
इस तरह सांप के मन में क्रोध के स्थान पर संतोष एवं प्रसन्नता का भाव बढ़ने लगा।ज्यों-ज्यों सांप आगे बढ़ता गया,वैसे -वैसे उसका क्रोध कम होता गया।राजमहल के अंदर प्रवेश करते समय तो सांप ने देखा कि संतरी और प्रहरी सशत्र खड़े हैं,परन्तु उसे जरा भी हानि पहुंचाने की कोशिश नहीं कर रहे हैं।
यह असाधारण सी लगने वाले दृश्य को देखकर सांप के मन में राजा के लिए स्नेह उमड़ आया।सदव्यवहार, नम्रता,मधुरता के जादू ने उसे मंत्र मुग्ध कर लिया और अभूतपूर्व सेवा से वशीभूत होकर वह राजा को डंसने के विचार से विचलित होने लगा।कहाँ वह राजा को डंसने चला था;परन्तु अब उसके लिए अपना कार्य असंभव हो गया।हानि पहुँचाने के लिए आने वाले शत्रु के साथ जिसका ऐसा व्यवहार है,उस धर्मात्मा राजा को काटूं ? यह सोचकर सांप अजीब दुविधा में पड़ गया।
राजा के पलंग तक जाने तक सांप का निश्चय पूरी तरह से बदल दिया।उधर समय से कुछ देर बाद सांप राजा के शयन कक्ष में पहुंचा।सांप ने राजा से कहा,राजन ! मैं तुम्हें डंसकर अपने पूर्व जन्म का बदला लेने आया था ; परन्तु तुम्हारे सौभाग्य से मेरा मन तुम्हारे सदव्यवहार,स्वागत – सत्कार से मुझे परास्त कर दिया।
अब मैं तुम्हारा शत्रु नहीं मित्र हूँ।मित्रता के उपहार स्वरुप अपनी बहुमूल्य मणि मैं तुम्हें दे रहा हूँ।लो इसे अपने पास रखो।इतना कहकर और मणि राजा के सामने रखकर सांप चला गया।
निष्कर्ष :- यह कहानी नहीं जीवन की सच्चाई है।अच्छा व्यवहार कठिन से कठिन कार्यों को सरल एवं सुगम बनाने का माद्दा रखता है। यदि व्यक्ति व्यवहार कुशल है तो वो सब कुछ पा सकता है,जो पाने की वो हार्दिक इच्छा रखता है।
माता -पिता भगवान् से भी श्रेष्ठ
बेटे के जन्मदिन पर रात के 1:30 बजे फोन आता है, बेटा फोन उठाता है तो माँ बोलती है -” जन्मदिन मुबारक हो लल्ला “। बेटा गुस्सा होकर माँ से कहता है – सुबह फोन करती, इतनी रात को नींद ख़राब क्यों कर दी ? कह कर फोन रख देता है।
थोड़ी देर बाद पिता का फोन आता है। बेटा पिता पर गुस्सा नहीं करता बल्कि कहता है – सुबह फोन करते। फिर पिता ने कहा – मैंने तुम्हें इसलिए फोन किया है कि तुम्हारी माँ पागल है जो तुम्हें इतनी रात को फोन किया। वो तो आज से 25 साल पहले ही पागल हो गई थी, जब उसे डॉक्टर ने ऑपरेशन करने को कहा और उसने मना किया था। वो मरने के लिए तैयार हो गई पर ऑपरेशन नहीं करवाया। रात के 1:30 को तुम्हारा जन्म हुआ। शाम 6 बजे से रात 1:30 तक वो प्रसव पीड़ा से परेशान थी। लेकिन तुम्हारा जन्म होते ही वो साड़ी पीड़ा भूल गई।उसके ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा। तुम्हारे जन्म से पहले डॉक्टर ने दस्तखत करवाए थे कि अगर कुछ हो जाये तो हम जिम्मेदार नहीं होंगें। तुम्हें साल में एक दिन फोन किया तो तुम्हारी नींद ख़राब हो गई —मुझे तो रोज रात को 25 साल से रात के 1:30 बजे उठाती है और कहती है देखो हमारे लल्ला का जन्म इसी वक्त हुआ था।बस यही कहने के लिए तुम्हें फोन किया था।इतना कहके पिता फोन रख देते हैं।
बेटा सुन्न हो जाता है।सुबह माँ के घर जा कर माँ के पैर पकड़ कर माफ़ी मांगता है—-तब माँ कहती,देखो जी मेरा लाल आ गया। फिर पिता से माफ़ी मांगता है तब पिता कहते हैं -आज तक ये कहती थी कि हमें कोई चिंता नहीं हमारी चिंता करने वाला हमारा लाल है। पर अब तुम चले जाओ मैं तुम्हारी माँ से कहूंगा कि चिंता मत करो,मैं तुम्हारा हमेशा की तरह आगे भी ध्यान रखूँगा।
तब माँ कहती है – माफ़ कर दो बेटा है।सब जानते हैं दुनियां में एक माँ ही है जिसे जैसा चाहे कहो फिर भी वो गाल पर प्यार से हाथ फेरेगी।पिता अगर तमाचा न मारे तो बेटा सर पे बैठ जाये। इसलिए पिता का सख्त होना भी जरुरी है।
माता – पिता को आपकी दौलत नहीं बल्कि आपका प्यार और वक्त चाहिए। उन्हें प्यार दीजिये। माँ की ममता तो अनमोल है।
निवेदन :- इसको पढ़ कर अगर आँखों से आंसू बहने लगे तो रोकिये मत, बह जाने दीजिये । मन हल्का हो जायेगा।
भगवान् से बढ़ कर माता – पिता होते हैं। ” I LOVE YOU MUMMY “
विलक्षण कर्मयोगी
बनिया एक ऐसा प्राणी होता है जो अपने व्यापार में नुक़सान शायद ही उठाता है।
इसी सन्दर्भ में एक कहानी सर्वविदित है,जिसे लोग सुनते और सुनाते आ रहे हैं।
एक बार एक लड़के की अण्डों से भरी टोकरी साईकिल के पत्थर से टकराने से
टूट गई ! भीड़ इकट्ठी हो गई और सभी चिल्लाने लगे, देख कर चलो भाई,कितनी
गंदगी कर दी !! तभी एक काका ने भीड़ से कहा, इतना चिल्लाने से अच्छा है,ये
सोचो इसका मालिक इसकी क्या हालत करेगा,इसकी पगार में से पैसे काट लेगा,
इसकी कुछ मदद करो,ये लो मेरी तरफ से 10 रूपये।सभी ने सहानुभूति दिखाते
हुए 10 – 10 रूपये दिए।लड़का बहुत खुश हुआ,क्योंकि मिली हुई रकम अण्डों
की कीमत से बहुत ज्यादा थी !! सभी के चले जाने के बाद एक व्यक्ति ने उस लड़के
से पूछा,अगर काका न होते तो तू अपने मालिक को क्या जवाब देता ?
लड़का -वो काका ही तो मेरा मालिक है और वो बनिया है।
उधार के पैसे
—————
बाहर बारिश हो रही थी और अंदर कक्षा चल रही थी, तभी
शिक्षक ने छात्रों से पूछा कि अगर तुम सभी को 100 -100
रूपये दिए जाएं तो तुम सब क्या -क्या खरीदोगे ?
किसी ने कहा कि मैं वीडियो गेम खरीदूंगा,
किसी ने कहा मैं क्रिकेट बैट खरीदूंगा,
किसी ने कहा कि मैं अपने लिए प्यारी सी गुड़िया खरीदूंगी तो
किसिस ने कहा मैं बहुत सी चॉकलेट्स खरीदूंगी।
एक बच्चा कुछ सोचने में डूबा हुआ था,तभी शिक्षक ने उससे पूछा
कि तुम क्या सोच रहे हो ? तुम क्या खरीदोगे ?
बच्चा बोलै कि शिक्षक जी,मेरी माँ को थोड़ा कम दिखाई देता है तो
मैं अपनी माँ के लिए एक चश्मा खरीदूंगा।
शिक्षक ने पूछा – तुम्हारी माँ के लिए चश्मा तो तुम्हारे पिताजी भी
खरीद सकते हैं,तुम्हें अपने लिए कुछ नहीं खरीदना ?
बच्चे ने जो जवाब दिया उससे शिक्षक का भी गला भर आया।
बच्चे ने कहा कि मेरे पिताजी अब इस दुनियां में नहीं हैं।मेरी माँ
लोगों के कपड़े सिलकर मुझे पढ़ाती है और कम दिखाई देने की
वजह से वो ठीक से कपड़े नहीं सिल पाती है इसलिए मैं मेरी माँ
को चश्मा देना चाहता हूँ ताकि मैं अच्छे से पढ़ सकूँ।बड़ा आदमी
बन सकूँ और माँ को सारे सुख दे सकूँ !
शिक्षक ने कहा -बीटा तेरी सोच ही तेरी कमाई है। ये 100 रूपये
मेरे वादे के अनुसार और ये 100 रूपये और उधार दे रहा हूँ।
जब कभी कमाओ तो लौटा देना और मेरी इच्छा है तू इतना
बड़ा आदमी बने कि तेरे सर पे हाथ फेरते समय मैं धन्य हो जाऊँ।
15 वर्ष बाद ——
बहार बारिश हो रही थी,अंदर कक्षा चल रही थी।अचानक स्कूल के
आगे जिला कलेक्टर की बत्ती वाली गाड़ी आकर रुकती है।स्कूल
स्टाफ चौकन्ना हो जाता है।स्कूल में सन्नाटा छा जाता है।
मगर ये क्या ?
जिला कलेक्टर एक वृद्ध शिक्षक के पैरों में गिर जाते हैं और
कहते हैं – ” सर मैं दामोदर दास उर्फ़ झंडू !! आपके पैसे लौटने आया हूँ। “
पूरा स्कूल स्टाफ स्तब्ध !!!
वृद्ध शिक्षक झुके हुए नौजवान को उठाकर भुजाओं में कस लिया और रो पड़े ।
हम चाहें तो अपने आत्मविश्वास और म्हणत के बल पर अपना भाग्य खुद लिख सकते हैं।