बोध कथा
एक बार अदालत में एक अद्भुत एवं अनोखा मुकदमा आया , जिसे देखकर सबने दाँतों तले अंगुली दबा ली और सबको झकझोर कर रख दिया।न्यायालय में तो पारिवारिक झगड़े एवं संपत्ति के विवाद के केस तो आते रहते हैं। किन्तु यह मामला तो बिल्कुल अलग तरह का था।
एक 75 साल के बुजुर्ग व्यक्ति ने अपने 82 साल के बड़े भाई पर मुकदमा किया था।मामला यूँ था कि मेरा 82 साल का बड़ा भाई अब बूढ़ा हो गया है ।वह अपना काम भी ठीक तरह से करने में असमर्थ होते हुए भी मेरे मना करने के बाबजूद वह हमारी माँ की देखभाल कर रहे हैं, जिसकी आयु 108 साल है।मैं अभी बड़े भाई की तुलना में बेहतर हूँ और अब मुझे भी अपनी माँ की सेवा का अवसर मिलना चाहिए।इसलिये मुझे माँ को सौंपा जाय।
अदालत में केस की सुनवाई करते समय जज का दिमाग घूम गया और मुकदमा भी काफी सुर्ख़ियों में आ गया।न्यायालय में जज ने दोनों भाइयों को अपने तरीके से समझाने की भरपूर कोशिश की , किन्तु दोनों टस से मस नहीं हुए। अंत में जज ने दोनों भाइयों को 15 – 15 दिन रखने के लिए कहा। जज की बात दोनों में से किसी ने नहीं मानी।
बड़े भाई का कहना था कि मैं अपने को स्वर्ग से दूर क्यों रखूं। माँ से पूछा जाय , यदि उसको मेरे पास कोई दिक्कत है या मैं उसकी देखभाल सही तरीके से नहीं करता तो माँ को छोटे भाई के पास रहने को दिया जाय।
छोटा भाई कहता है कि पिछले 35 सालों से बड़े भाई अकेले सेवा कर रहे हैं । आखिर मुझे भी सेवा करने का अवसर मिलना चाहिए , मेरा भी कर्तव्य और अधिकार है माँ की सेवा करने का तो मैं इस महान कार्य से वंचित क्यों ?
परेशान जज ने सभी तरह की कोशिश की ; किन्तु कोई हल नहीं निकलता देख आखिर में न्यायाधीश ने माँ को बुलवा कर उसकी राय जाननी चाही । माँ कुल 32 – 33 किलो की वजन वाली बेहद दुर्बल सी महिला थी जो अत्यंत मुश्किल से व्हील चेयर पर बैठकर आई और उसने जज को बड़े ही दुःखी मन से कहा कि मेरे दोनों बेटे बराबर हैं। मैं किसी एक के पक्ष में फैसला सुनाकर , दूसरे का दिल नहीं दुखा सकती। आप जज हैं , फैसला करना आपका काम है , जो निर्णय करना हो कीजिये मैं उसे ख़ुशी पूर्वक स्वीकार करुँगी।
अंत में जज महोदय ने बड़े सोच – समझ कर बड़े ही भारी मन से फैसला सुनाया कि न्यायालय छोटे भाई की भावनाओं से सहमत है कि बड़ा भाई निःसंदेह बूढ़ा हो गया है और कमजोर भी है । ऐसे में उसे खुद अपना काम करने में दिक्कत एवं परेशानी है ।इसलिए माँ की सेवा करने की जिम्मेदारी छोटे भाई को दी जाती है।
फैसला सुनकर बड़ा भाई बड़े जोर – जोर से फूट- फूट कर रोते हुए कहने लगा कि इस बुढ़ापे में मेरे स्वर्ग को मुझसे छीन लिया गया।अदालत में मौजूद जज समेत सभी लोगों के आँखों में आंसू आ गए और रोने लगे।इस तरह का विवाद जज के जीवन में पहली बार आया था जो उसे झकझोर कर रख दिया और सोचने पर मजबूर कर दिया कि वाद विवाद हो तो इस स्तर का।
आज बूढ़े माँ – बाप ओल्ड एज होम में रहने के लिए मजबूर हैं क्योंकि कोई भी पुत्र अपने पास रखना नहीं चाहता है ; क्योंकि उनकी स्वतंत्रता में खलल पड़ती है और वह अपनी बीबी की बातों को नहीं टाल सकता है।किन्तु इस तरह के विवाद से सबको सबक लेनी चाहिए