ये मस्त उम्र फिर नहीं आएगी
जब शनैः-शनैः उम्र बढ़ती जाएगी,
इत्र की जगह आयोडेक्स
की खुशबू आएगी।
कहता हूँ अब भी मिल लिया करो,
ये घड़ियाँ पलट कर नहीं आएँगी।
अभी तो आँखों में नूर है बांकी,
फिर खूबसूरती नजर नहीं आएगी।
अभी तो यार हैं चलते अपने साथ,
फिर केवल छड़ी ही नजर आएगी।
सुन लो आवाज दोस्तों की,
फिर कानों में मशीन नजर आएगी।
हंस लो खिलखिला कर आज,
फिर नकली बत्तीसी ही,
झलक दिखाएगी।
जब दोस्त बुलाएँ,चले जाओ,
फिर डॉक्टरों से फुर्सत न मिल पायेगी।
समझ जाओ यारों,समझ जाओ,
ये मस्त उम्र फिर नहीं आएगी।
कहते जोक स्वामी समय रहते समझ जाओ,
बर्ना पछताने के शिवा कुछ नहीं मिल पायेगा।
यह दुनियाँ का है दस्तूर,नहीं है इसमें किसी का कसूर,
ये तो एक दिन होना ही है,जाहे कितना लगा लो जोर।
होना वही है जो विधाता को है मंजूर।
*दोस्त अब थकने लगे हैं *
किसी का ” पेट ” निकल आया है,
किसी के ” बाल ” पकने लगे हैं —
सब पर भारी – जिम्मेदारी है,
सबको छोटी मोटी कोई बीमारी है।
दिन भर जो भागते – दौड़ते थे,
वो अब चलते – चलते भी रुकने लगे हैं।
पर ये हकीकत है,
सब दोस्त थकने लगे हैं —
किसी को लोन की फ़िक्र है,
कहीं हेल्थ टेस्ट का जिक्र है।
फुर्सत की सब को कमी है,
आँखों में अजीब सी नमीं है।
कल जो प्यार के खत लिखते थे,
आज बीमे के फॉर्म भरने में लगे है।
पर ये हकीकत है,
सब दोस्त थकने लगे हैं—
** आप अच्छे लगते हो **
जाने क्यों अच्छे लगने लगे हो तुम —?
ना जानती हूँ, ना पहचानती हूँ,
बस इतना समझती हूँ कि
कोई ना कोई रिश्ता जरूर होगा
तभी तो मिले हैं हम !
हाँ समझती हूँ,सर ऊँचा है
तुम्हारा मुझसे,
तुम्हारा शांत सा चेहरा !
मानो पूर्णिमा का चाँद हो,
तुम्हारी आँखें मानो जैसे
नैनीताल की मदमस्त
कर देने वाली प्रकृति की
छाया हो—
तुम इतने बहुमुखी प्रतिभा
के धनी हो कि ये तुम खुद
नहीं जानते —ठीक एक
मृग के समान हो तुम
जिस प्रकार मृग अपनी नाभि से निकलने
वाली सुगंध को स्वयं नहीं जानता,
और वो इधर – उधर निहारता फिरता है,
ठीक उसी प्रकार तुम हो,
आप अच्छे लगते हो–
जाने क्यों अच्छे लगने लगे हो तुम—-?
सोचा भी नहीं था कभी,वह साथ आपका छूटेगा।
जीवन भर था स्नेह का बंधन,वो मझधार में टूटेगा।
” देह ” भले ही छोड़ गए हैं, छोड़ न सकते यूँ ही
अंतर्मन।
विनम्र प्रणाम है दिव्य आत्मा,स्वीकार करो ये श्रद्धा सुमन।