मैथिलीशरण गुप्त जी की जीवनी

                                                                                       मैथिलीशरण गुप्त जी की जीवनी

हिंदी साहित्य के इतिहास में खड़ी बोली के प्रणेता,प्रथम महत्त्वपूर्ण कवि एवं राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का जन्म 3 अगस्त 1886 ईस्वी में उत्तरप्रदेश के झाँसी जिला के चिरगांव में हुआ था। मैथिलीशरण गुप्त पिता सेठ रामचरण गुप्त एवं माता काशीबाई की तीसरी संतान थे।इनके माता – पिता दोनों ही वैष्णव थे,जिनका प्रभाव भी मैथिलीशरण गुप्त के जीवन पर पड़ा। विद्यालय में खेलकूद में अधिक रूचि के कारन पढ़ाई ठीक तरह से न कर सके।घर पर ही इन्होने हिंदी,बंगला एवं संस्कृत साहित्य का अध्धयन किया और मुंशी अजमेरी जी का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ।12 वर्ष की अवस्था में ब्रजभाषा में ” कनकलता ” नाम से कविता लिखना प्रारम्भ किया।आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के संपर्क में आने के पश्चात् इनकी कवितायेँ खड़ी बोली में मासिक ” सरस्वती ” में ” हेमंत ” शीर्षक कविता का प्रथम प्रकाशन हुआ।
                               पारिवारिक जीवन दुखद रहा।दो पत्नियों की मृत्यु के उपरांत तीसरी पत्नी सरयू देवी थी।राष्ट्रपिता गाँधी जी के संपर्क में आने पर उन्होंने गाँधी जी के हाथों ” मैथिलीमान ” ग्रन्थ भेंट की।1948 ईस्वी में आगरा विश्वविद्यालय से डी लिट् की मानद उपाधि से सम्मानित हुए। 1952 – 1964 ईस्वी तक राज्यसभा के सदस्य मनोनीत हुए। सन 1954 ईस्वी में भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया।तत्कालीन राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने सन 1962 ईस्वी में अभिनन्दन ग्रन्थ भेंट किया तथा हिन्दू विश्वविद्यालय के द्वारा डी लिट् से सम्मानित हुए। 1911 ईस्वी में ” साहित्य सदन “नाम से स्वयं की प्रैस शुरू की और झाँसी में 1954 – 55 ईस्वी में मानस – मुद्रण की स्थापना की।1963 ईस्वी से अपने अनुज सियाराम शरण गुप्त के निधन से उन्हें गहरा आघात लगा और 12 दिसंबर 1964 ईस्वी को दिल का दौरा पड़ा और साहित्य का जगमगाता सितारा का अस्त हो गया।
                                राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त के काव्य में राष्ट्रीय चेतना,धार्मिक भावना और मानवीय उत्थान प्रतिबिंबित स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। इनके काव्यों में देशभक्ति भावना से ओतप्रोत,समाजोत्थान के भाव,ईश्वर वंदना के स्वर,भारतीय संस्कृति की उद्घोषणा के भाव,राष्ट्र जागरण की महती अभिलाषा के स्वर,नन्हीं जागरण का स्वर,मानवत्व में देवत्व की स्थापना के स्वर स्पष्ट परिलक्षित होता है।वास्तव में इनके काव्य भारत – भारती के तीन खंड में देश का अतीत,वर्तमान और भविष्य चित्रित हैं।वे मानवतावादी,नैतिक और सांस्कृतिक काव्यधारा के विशिष्ट कवि थे।
                                                                          मैथिलीशरण गुप्त की कृतियां :-
महाकाव्य :- साकेत,यशोधरा ।
खंडकाव्य :- जयद्रथ वध,भारत – भारती,पंचवटी,द्वापर,सिद्धराज,नहुष,अंजलि और अर्घ्य,अजित,अर्जन और विसर्जन,काबा और कर्बला,किसान,कुणाल  गीत,गुरु तेग बहादुर,गुरुकुल,जय भारत,युद्ध,झंकार,पृथ्वी पुत्र,बकसंहार,शकुंतला,विश्व वेदना,राजा                                       प्रजा,विष्णुप्रिया,उर्मिला,लीला,प्रदक्षिणा,दिवोदास,भूमि भाग ।
नाटक :- रंग में भंग,राजा प्रजा,वन वैभव,विकट भट,विरहिणी,वैतालिक,शक्ति,सैरंध्री,स्वदेश संगीत,हिडिम्बा,हिन्दू,चन्द्रहास ।
अनुदित नाटक :- संस्कृत – स्वप्नवासवदत्ता,प्रतिमा,अभिषेक,अविमारक ( भाष ),रत्नावली ( हर्षवर्धन ) ।
बंगाली – मेघनाद वध,विरहिणी वज्रांगना ( माइकल मधुसूदन दत्त ) ,पलासी का युद्ध ( नवीन चंद्र सेन ) ।
फ़ारसी – रुबाइयात उम्र खय्याम ( उमरख़य्याम ) ।
कविताओं का संग्रह :- उच्छवास ।
पत्रों का संग्रह :- पत्रावली ।
मौलिक नाटक :- अनघ,चरणदास,तिलोत्तमा,निष्क्रिय प्रतिरोध ।

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