शादी के बाद की मनोदशा

                     शादी के बाद की मनोदशा

शादी के बाद मायके जाती हूँ तो ऐसा लगता है कि बैग मुझे चिढ़ाता है।
मेहमान बन गयी हूँ अब यहाँ, ये हर पल- पल बताता है मुझे।।

माँ का यह कहना कि, सामान बैग में डाल लो —।
हर बार तुम्हारा कुछ ना कुछ सामान छूट जाता है यहाँ।।

कितने दिन भी रहूं यहाँ,ऐसा लगता है वक्त परिंदे सा उड़ता जाता है —-।
अँगुलियों पर लेकर जाती हूँ गिनती के दिन।

वक्त जाते या फिसलते हुए जाने का दिन पास आता है —-।
और मन आता है यह भाव, अब कब होगा आना —–?

सबका पूछना यह सवाल — उदासी भीतर तक छा जाती है –।।
बड़े बुजुर्ग —–बेटी कब आई —-? यह पूछने चले आते हैं —-।
और पूछना कि कब तक रहोगी —-? अनजाने में वो घाव अत्यंत गहरा कर जाते हैं -।।

और मन में अनायास ही यह भाव आ जाता है कि —।
कि तू तो एक मेहमान है —।

अब मुझे पल -पल ये बताता है -।।
मेरा वो घर वास्तव में बहुत याद आता है –।

मायके की बचपन की यादें मुझे बहुत सताता है -।
जब कभी अकेली तन्हाइयों में होती हूँ तो बहुत रूलाता है –।

क्या करूँ मेरा मन ही ऐसा है कि मायके की बात नहीं भूल पाती हूँ —।
मायके जा जाती हूँ तो मेरा बैग मुझे बहुत चिढ़ाता है
तू तो मेहमान है अब यहाँ, ये हर पल पल बताता है — हर पल बताता है।।

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