गर्व करो तुम शिक्षक हो
हर छात्र के जीवन -निर्माता,
सफलता के हर भेद के ज्ञाता,
हर गतिविधि के तुम अधीक्षक हो,
गर्व करो तुम शिक्षक हो।
क्या गलत हुआ,क्या हुआ सही,
क्यों गलत हुआ,क्या कसर रही,
हर परिस्थिति के तुम निरीक्षक हो,
गर्व करो तुम शिक्षक हो।
हर जीवन को जो राह दिखता,
आदर्श जीवन की पहचान कराता,
उच्चतम दीक्षा के तुम दीक्षक हो,
गर्व करो तुम शिक्षक हो।
विभिन्न भूमिकाएं कर स्वीकार,
कराते जीवन से साक्षात्कार,
कभी दोस्त,मार्गदर्शक,परीक्षक हो,
गर्व करो तुम शिक्षक हो।
गर्व करो तुम शिक्षक हो।
शिक्षक—–
अँधेरी गली में किसी खम्भे पर लगी रोशनी सा है,
नीरवता में पसरी मायूसी को तोड़ती ध्वनि सा है।
इश्क़ है उसे स्टूडेंट्स,क्लासरूम,ब्लैकबोर्ड,चॉक से,
मकाँ तामीर करती किसी राजगीर कि करनी सा है।
शिक्षक—–
प्यासी धरा के चातकों के लिए अमृत क़तरा सा है,
धूप के सायों में शजर कि छाँव बनके पसरा सा है।
इश्क़ है उसे किताब से,कलम से,अपने सेवार्थ से,
इन हुकूमत के प्रयोगों में तपता सोना खरा सा है।
शिक्षक—–
कोरे से मन पर भोर के साथ सूरज की दस्तक सा है,
जानने की,सीखने की भीतर की एक ललक सा है।
इश्क़ है उसे लाईब्रेरी से,प्ले ग्राउंड से,अपनी लैब से,
ख़ूबसूरत मंजिलों तक ले जाती किसी सड़क सा है।