समसामयिक नज्म आपकी इनायतों की नजर

समसामयिक नज्म आपकी इनायतों की नजर

मौसम की नीयत है बुरी
बेवजह घर से निकल
तेरी जान है तो जहाँन है
तू सोच ले तू जा सम्हल
मौसम की नीयत है बुरी
क्या,कौन जाने होगा कल।।

परदा रहे तो है भला
बेपर्दा होक यूँ न चल
मौसम की नीयत है बुरी
जाने कहाँ जाए मचल

तेरा हुस्न है सौ नियामतें
इसे रख सलामत मत निकल
ये वक्त ए क़यामत जान ले
तू मत फिसल तू मत फिसल
मौसम की नीयत है बुरी
पढ़ता नहीं है ये मिसल।।

क्यों घूमता है दर ब दर
मेरे मनचले मन अब न चल
मंजिल इसी को मान ले
बस ठहर जा अब ना मचल
मौसम की नीयत है बुरी
ये रंग बदलती पल ब पल।।

तू दर्द दिल में ज़ज्ब कर
जज़्बात सारे दे मसल
तेरा इश्क़ गर है नेक बन्दे
तू कर यक़ीन मिल जाए कल
मौसम की नीयत है बुरी
अब मौत की बोई फ़सल।।

कर दुआ सब हों सलामत
मर्ज़ ए बाद जाए कुचल
इस घर को अपना घर समझ
तू ! मत तू ! मत निकल।।
मौसम की नीयत है बुरी
हर पल सम्हल पल पल सम्हल।।

तेरी जीत पक्की हार जा
यही फूँक दे घर घर बिगुल
तेरा बाल बांका हो नहीं
घर के मजे ले कर, चुहल
मौसम की नीयत है बुरी
तू हो सके तो बच निकल।।

तेरी आशिक़ी की ये तलब
बरबाद कर दे ना फ़सल
तेरे पास होगा जवाब क्या ?
पूछेंगी तुझसे जब नसल
मौसम की नीयत है बुरी
ख़तरे में सारे फूल ओ फल।।

ज़मीं दोज हैं सब हस्तियां
दुनियां में जिनका था दखल
वीरान हैं सारे किले
सारे भवन सारे महल
मौसम की नीयत है बुरी
छिप जा ” स्वामी ” मत कह ग़ज़ल।।
ना बेवजह घर से निकल।।

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