सर्दी के मौसम के तराने
” किसी ने पहने हैं कोट और मफलर,
किसी ने तपने के लिए आग जलाई है,
कोई बेचारा डरा सहमा लेकर बैठा रजाई है,
उफ़्फ़ ! ये हार कंपाती सर्दी आयी है।
चाय कॉफी की खूब चढ़ी है,
कोल्डड्रिंक्स कोने में पड़ी है,
पिज्जा बर्गर भूल गए सब ,
खाते गुड़,गज्जक,रेवड़ी है,
मुँह से धुआं आयी है,
चारों तरफ धुंध छाई है,
उफ़्फ़ ! ये हार कंपाती सर्दी आयी है।
सरसों के पीले फूलों ने ,
धरती क्या खूब सजाई है,
मौसम की इस प्यारी करवट से,
मनमोहक हरियाली छाई है,
उफ़्फ़ ! ये हार कंपाती सर्दी आयी है।
धूप लगती है सबको प्यारी,
बात सुनो एक खास हमारी,
हम तुम तो गंदे ही अच्छे हैं,
रोज नहाने वालों की सामत आयी है,
उफ़्फ़ ! ये हार कंपाती सर्दी आयी है।”