हरित-लघुकथा
                                             अपना भविष्य
डॉ.मेहता नगेन्द्र
राजधानी के एक बड़ा अस्पताल में कमला
मात्र नर्स नहीं, बल्कि सभी की चहेती है। गौरवर्णी
छरहरा बदन,सुगिया नाक,सूर्ख गाल, मोती को मात
देती दंतपंक्ति और उन्नत उरोज का गीलापन उसके
सौन्दर्य में चांद की सोलह कलाएं समेटे हुए दिखती हैं। उर्वशी, मेनका, ऐश्वर्या,अवन्तिका और मेघना
आदि नामों से पुकारी जाती। लेकिन नर्स सखियां उसे प्यार से कम्मो पुकारती है।
अधीक्षक डॉ.घोष ने कमला को बुलाकर कहा-
” देखो कमला,कल से तुम्हारी डियूटी पेईंग वार्ड के
नौ नम्बर काॅटेज में रहेगी। डियूटी में किसी तरह की
लापरवाही नहीं होनी चाहिए। शहर के सबसे अमीर
सेठ की पत्नी सुनंदा जी स्पाइनल कॉर्ड की मरीज हैं। अपनी सेवा की काबिलियत वहां दिखाना।”
कमला को सुनंदा जी माॅ॑ जैसी दिखीं। सौन्दर्य का पिटारा लिये सुनंदा जी सालभर से अशक्त थीं।
खंडहर बताती है कि इमारत बुलन्द रही होगी। सेवा
करते हुए कमला को इतना अहसास हुआ कि जवानी के दिन मृगतृष्णा जैसा होता है। खासकर
बाथरूम में सुनंदा जी को स्नान कराते समय टट्टर
शरीर को देखकर कांप जाया करती।
स्टाफ रूम में मनझान कमला को देखकर
सखियां पूछ बैठी-‘ अरे कम्मो, क्या हुआ, नूरानी
चेहरा पर मुस्कान नहीं?’ गीली आंखों से ताकती हुई बोली- ‘ सुनंदा जी नहीं रहीं। आज मैं अपना भी
भविष्य देख आयी हूं।

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