हरित-लघुकथा उपलब्धि
डॉ.मेहता नगेन्द्र
आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में आहूत एक
साहित्यिक सेमिनार में भाग लेने गया था। सेमिनार की समाप्ति पर एक पत्रकार मेरे पास आकर बोला-
‘ श्रीमान् आपके व्याख्यान से मैं काफी प्रवाहित हुआ। आदतन आपसे एक प्रश्न पूछना चाहता हूं।’
सुलभ स्वाभाववश मैंने हामी भर दी।
उसने मुझे एक कोने में ले गया और एक छोटा सा प्रश्न पूछा-‘श्रीमान् बतलाते कि अबतक आपकी उपलब्धि क्या रही है?’ इस प्रश्न पर भौंचक होकर
चिहुंक उठा-‘ अरे यह छोटा प्रश्न है? इसका उत्तर देने में घंटों लग जायेगा।’ मेरे चिहुंकने पर वह मुस्कराया और आग्रह किया। ‘सर,कुछ तो कहिये।’
तब मैंने कहा-“देखिये,मैं मूलतः भू-वैज्ञानिक हूं बाद में पर्यावरण-साहित्य सृजन अभियान का नेतृत्व कर रहा हूं। भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण के दौरान
हिमालय की अठारह हजार फीट की ऊंचाई पर
गया तो सर्वप्रथम पहले अपनी भौतिक स्थिति को
जांची। वहां भी मैं पांच फीट पांच इंच था। उसके
बाद जब ‘कोलार गोल्ड’ माइन्स में करीब मीलों नीचे उतरा। वहां भी सर्वप्रथम अपने को देखा। पांच
फीट पांच इंच पाया। यही मेरी उपलब्धि है।”
‘श्रीमान् मैं कुछ समझा नहीं,यह कोई उपलब्धि
है। थोड़ा स्पष्ट कर दीजिये,समझने में आसान होगा’ पत्रकार ने पुनः आग्रह किया।
इस पर मैंने संक्षिप्त शब्दों में कहा-” देखिये मैं
हिमालय की कथित ऊंचाई पर पहुंचा,वह ऊंचाई मेरी लम्बाई में नहीं जुड़ी, फिर कोलार गोल्ड की गहराई में उतरा, वहां मेरी लम्बाई नहीं घटी। दोनों जगह मेरी लम्बाई का यथार्थ बना रहा यानी पांच फीट पांच इंच। कहने का आशय यह है कि किसी
भी परिस्थिति में किसी को भी यथार्थ का बोध हो जाना ही उसके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है।” यह बात समझकर पत्रकार खुश दिखे।अन्य लोग भी मेरा अता-पता मांगने लगे।

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