हरित-लघुकथा – मेधा

-डॉ.मेहता नगेन्द्र
वर्ष 1962 की बात है। शिक्षक पिता और शिक्षिका माता की प्रथम मेधावी पुत्री शीला प्रथम श्रेणी में मैट्रिक की परीक्षा पास की। कस्बाई इलाके
में शीला की मेधावी कुछ दिन तक चर्चा का विषय
बना रहा। सुन्दर,सुशील और मेधावी शीला आगे की पढ़ाई के लिए पटना वीमेन्स कालेज में दाखिला
ली। मां की प्रबल इच्छा रही कि बेटी डाक्टर बने।
माता-पिता के शिक्षक होने के बावजूद शीला की शादी की चिन्ता साथ-साथ चलने लगी। मां की
पहल से शीला की जात-बिरादरी में शादी की बात फैल गई। उच्च-मध्यम परिवार से पसंद लायक तीन प्रस्ताव मिले। तीनों जगह लड़का इंजीनियर था।
लड़की दिखाने का क्रम चला। शीला इस रेस में भी
अव्वल निकली।
पहली जगह इंजीनियर लड़का को डाक्टर संगिनी
नहीं चाहिए। दूसरी जगह लड़का का बड़ा भाई लड़की के आगे की पढ़ाई के खिलाफ निकला। तीसरी जगह लड़का का मामा शीला के सौंदर्य और मेधा से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने शीला की मां को एकांत में ले जाकर कहा-” देवी जी, आपको कुछ गलतफहमी हुई है। मेरा भगिना इंजीनियर नहीं ओभरसीयर है और रंग में पक्का जमुनिया है।
आप लड़की को पहले डॉक्टर बनने दें।”
निराश होकर मां वापस लौटी। मां को देखकर
शीला चुप रही, लेकिन कारण सुनकर शीला के अन्दर की मेधा पुलक उठी।

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