कड़ुवा सत्य कविता

कड़ुवा सत्य कविता

” तुम मुसलमान हो,
मुझे दिक्कत नहीं है।
तुम ईसाई हो,
मुझे दिक्कत नहीं है।

मैं हिन्दू हूँ तो,
तुम्हें दिक्कत है ?

फिर तो तुम
दिक्कत में रहोगे हमेशा।
क्योंकि
मैं गर्वित
कट्टर
हिन्दू हूँ।

पाक से लेकर पेरिस तक,
कहीं भी आतंकी हमला हो तो।

एक ही कौम
एक ही मज़हब
और
एक ही मानसिकता वाले
लोगों पर शक जाता है।
और
वो शक
सच साबित भी होता है।

तो कैसे मैं कह दूँ,
आतंकवाद का
कोई मज़हब नहीं होता ?

एक गांधी मरा तो,
6000 ब्राह्मणों को मारा गया।

एक इंदिरा गांधी मरी तो,
4700 सिखों को मारा गया।

एक दामिनी को
दर्दनाक मौत दी गयी,
कुछ एक मोमबत्ती जलीं।

मुसलमान
वन्दे मातरम् न बोलें
तो ये उन का धार्मिक मामला है।

नरेंद्र मोदी टोपी न पहने
तो ये
सांप्रदायिक मामला है ?

डेनमार्क में अगर
कोई फोटो बन गयी
तो उस का सर कलम।

श्रीराम की जमीन पर
अगर मंदिर बनाने को
बोला जाए तो हिन्दू बेशर्म ?

गोधरा में जो 50 – 60 हिन्दू
ट्रेन में जले,
वो सब भेड़ बकरी थे।

और उसके बाद
जो मुस्लिम मरे
वो देश के सच्चे प्रहरी ?

31 साल पहले ही
कश्मीर हो गया
हिन्दुओं से खाली,

देश की बढ़ती
मुस्लिम आबादी
हमारी कैसी खुशहाली ?

पठानी सूट,
नमाज़ी टोपी में
वो ख़ूबसूरत।

हम सिर्फ
तिलक लगा लें या
राम कह दें तो
भगवा आतंक की मूरत ?

कोई लड़ता है यहाँ
पाक़िस्तान के लिए,
कोई लड़ता है
उर्दू ज़ुबान के लिए,

सब चुप हो जाते हैं,
श्री राम नाम के लिए।

अब तो गूंजते हैं नारे
तालिबान के लिए।

हिन्दू परेशान है,
नौकरी और दूकान के लिए।

मैं पूछता हूँ
इसका
समाधान कहाँ है ?

अरे तुम ही बोलो
हिन्दू का हिन्दुस्तान कहाँ है ?

जिसकी तलवार की छनक से,
अकबर का दिल घबराता था।

वो अजर अमर वो शूरवीर
वो महाराणा कहलाता था।

फीका पड़ता था
तेज सूरज का,
जब माथा ऊंचा करता था।

थी तुझमें कोई बात राणा,
अकबर भी तुझसे डरता था।

पुत्र मैं भवानी का
मुझ पर किसका ज़ोर

काट दूंगा हर वो सर,
जो उठा मेरे धर्म की ओर।

भूल जाओ अपनी जात,
करो सिर्फ धर्म की बात।

एक बार नहीं
सौ बार सही
हर बार यही दोहराएंगे।

जहाँ जन्म हुआ
प्रभु श्री राम जी का
मंदिर वहीं बनाएंगे।

हिन्दुस्तान के सभी हिन्दू
संगठन एक साथ मिल जाएँ !
इण्डिया नहीं,
हमें हिन्दुस्तान चाहिए !”

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