आत्मविश्वास एवं आत्मनिर्भरता

                                                             आत्मविश्वास एवं आत्मनिर्भरता

आत्मविश्वास मनुष्य का वह सम्बल है,जो रास्ते की हर बाधा को धाराशाही कर सकता है। आत्मविश्वास वह देदीप्यमान प्रकाश पुंज है जिसके आविर्भाव होते ही तमाम मुश्किलें,विघ्न बाधाएं अपने – आप दूर हो जाती हैं। जिस प्रकार गहन अन्धकार में एक जलता हुआ दीपक व्याप्त अँधेरे को दूर कर देता है, उसी प्रकार आत्मविश्वास रूपी प्रकाश के उदय होते ही जीवन की सारी मुश्किलें दूर हो जाती हैं। आत्मविश्वास से परिपूर्ण व्यक्ति आत्मनिर्भरता के सोपान द्वारा अपने जीवन को समृद्ध एवं खुशहाल बना सकता है। दरिद्रता का एकमात्र कारण है अपने मन की दरिद्रता। यदि आपका मन दरिद्र है तथा उसमें निर्धनता व अभाव के विचार ही भरे हुए हैं तो आप संपन्न कैसे बन सकते हैं ? वास्तव में आप यह कल्पना ही नहीं कर पाते हैं कि आपमें भी ऐसी अनेक शक्तियाँ,सामर्थ्य एवं योग्यताएँ हैं,जिनके थोड़े से प्रयोग मात्र से आप वर्तमान से कई गुणा अधिक संपन्न बन सकते हैं। आत्मविश्वास से परिपूर्ण व्यक्ति को सफलता की मंजिल पाने के लिए ऐसा रास्ता अपनाना चाहिए,ऐसी राह पर चलने की कोशिश करनी चाहिए जो मंजिल तक ले जा सके। बिना किसी राह के मंजिल तक पहुंचना असंभव है।
                आत्मविश्वास की कमी होने के कारण हो सकता हैं कि प्रारम्भ में आपको ऐसा लगे कि आप उतने योग्य नहीं हैं,जितना अन्य व्यक्ति आपको समझते हैं,लेकिन ऐसी आशंकाओं के फेर में मत पड़िये। योग्यता तो बनाने से बनती हैं। बार – बार रस्सी के घिसने से पत्थर पर भी निशान पद जाता है। जरुरत बस इस बात की है कि आप अपने भीतर छिपी आत्मविश्वास कि शक्ति को जाग्रत करें ,फिर देखें सफलता खुद चलकर आपके क़दमों तले आ जाएगी और आपको आत्मनिर्भर बनने से कोई नहीं नहीं रोक पायेगा। ” अधिकांश लोग लकवे से ग्रस्त होते हैं,अपने हाथ – पैरों से नहीं बल्कि अपने विचारों से । ”
                आत्मनिर्भरता स्वावलम्बियों की आराध्य देवी है। इस देवी की उपासना से उनका आलस्य अंतर्धान हो जाता है,भयभीत होकर भाग जाता है,आत्मविश्वास उत्पन्न होता है,आत्मगौरव जाग्रत होता है। स्वावलम्बी व्यक्ति कष्टों और बाधाओं को रौंदता हुआ कंटकाकीर्ण पथ पर निर्भीकतापूर्वक आगे बढ़ता है। ऐसे ही कर्मवीरों के सम्बन्ध में कविवर अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध जी ने कहा है –
          ” पर्वतों को काटकर सड़कें बना देते हैं वे,
                              सैकड़ों मरुभूमि में नदियाँ बहा देते हैं वे।
              आज जो करना है कर देते हैं उसको आज ही,
                               सोचते,कहते हैं जो कुछ कर दिखाते हैं वही।”

भगवान् श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है –

                                             ” स्वे – स्वे कर्मण्यभिरतः संसिद्धिं लभते नरः

                    अर्थात जो व्यक्ति अपने कर्म के पालन में तत्पर रहता है,उसे ही सिद्धि प्राप्त होती है। एकलव्य स्वयं के प्रयास से धनुर्विद्या में प्रवीण बना,निपट दरिद्र बालक लाल बहादुर शास्त्री भारत का प्रधानमन्त्री बना,साधारण परिवार में जन्मा जैल सिंह स्वावलम्बन के सहारे ही भारत का राष्ट्रपति बना,मध्यमवर्गीय अध्यापक पुत्र श्री अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमन्त्री पद पर जा पहुँचे। टाटा,बिरला,सिंघानियाँ,डालमियां,खेतान,मोदी,अम्बानी,अडानी न जाने कितने आत्मविश्वास से भरे हुए स्वावलम्बियों ने न केवल स्वयं को आत्मनिर्भर,समृद्ध किया,अपितु राष्ट्र को औद्योगिक सम्पन्नता प्रदान कर विश्व प्रांगण में भारत का भाल ऊँचा किया।
ऐसे ही आत्मविश्वासी,ढृढ़संकल्पी,दुस्साहसी,स्वावलम्बियों से विधाता भी भयभीत हो जाता है और उनकी भाग्यलिपि लिखने से पूर्व पूछ लेता है तेरी इच्छा क्या है ? डॉ० इकबाल ने इसी तथ्य को प्रस्तुत करते हुए कहा है –
                                          ” ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले
                                                                   ख़ुदा बन्दे से खुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है। ”
आत्मविश्वासी कर्मवीरों के मार्ग में यदि कुछ बाधाएँ आ भी जाएँ तो वो घबराते नहीं, डटकर उनका मुकाबला करते हैं और प्रतिकूल परिस्थितियों में भी आनंद कि असीम अनुभूति अनुभव करते हैं। इसी भाव को जयशंकर प्रसाद ने इस तरह व्यक्त किया है –
                              ” वह पथ क्या ? पथिक कुशलता क्या ?
                                                   जिस पथ पर बिखरे शूल न हों।
                                 नाविक की धैर्य परीक्षा क्या ?
                                                    जब धाराएँ प्रतिकूल न हों।।”

इसी भाव को व्यक्त करते हुए मैथिलीशरण गुप्त जी ने लिखा है –

                                    ” जितने कष्ट – कंटकों में है,जिनका जीवन – सुमन खिला,
                                                                 गौरव गंध उन्हें उतना ही,अत्र तत्र सर्वत्र मिला। “

आत्मविश्वास ही सफलता की कुंजी है,जीवन का आधार है यूँ कहें कि जीवन में सफलता के लिए आत्मविश्वास उतना आवश्यक है,जितना मनुष्य के लिए ऑक्सीजन और पानी। जीवन में प्रगति चाहते हैं अतीत से सीखें,वर्तमान का सदुपयोग करें और भविष्य के प्रति आशावान रहें। अंत में मैं यह कहना चाहूँगा कि – ” जिसकी हम चाह करते हैं,जिसकी सिद्धि के लिए सम्पूर्ण अंतःकरण से अभिलाषा करते हैं,उसकी हमें अवश्य प्राप्ति होगी। “

 

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