सहदेवी का पौधा
सहदेवी का पौधा एक अत्यंत उपयोगी एवं चमत्कारिक औषधीय पौधा के रूप में जाना जाता है। यह एक शाकीय पौधा है ,जो 15 से 70 – 75 सेंटीमीटर की ऊंचाई का होता है। इसमें गुलाबी एवं बैंगनी रंग के पुष्प लगते हैं और इसे कई नामों से जाना जाता है – हिंदी में सहदेवी,सदोई,सहदेई आदि ,संस्कृत में सहदेवी,महबला,विश्वदेवा,गोवंदनी,दंडोत्पला आदि,पंजाबी में सहदेवी,तमिल में सहदेवी,बांग्ला में पीत पुष्प,कला जीरा आदि नामों से जाना जाता है। सहदेवी का वैज्ञानिक या वानस्पतिक नाम Vernonia cinerea है। आयुर्वेद में इसका अत्यंत औषधीय प्रयोग के रूप प्रयुक्त होने वाला पौधा है।
औषधीय प्रयोग
(1) सहदेवी का पौधे का रस निकालकर नाक में दो – दो बून्द सोने से पहले डालने से नींद लेन में अत्यंत कारगर औषधि है। इसके साथ ही अनिद्रा,डिप्रेशन,टेंशन से पीड़ित व्यक्ति भी बाहर आराम महसूस करता है।
(2) सहदेवी के पंचांग और तीन – चार काली मिर्च मिलाकर काढ़ा बनाकर सेवन करने से लिवर की विकृति से सम्बंधित समस्या शीघ्रता से दूर हो जाता है।
(3) सहदेवी के पौधे का पाउडर दो ग्राम की मात्रा सुबह सेवन करने से रक्त दोष ,खुजली,खाज,एक्जीमा आदि जड़ से दूर हो जाता है।
(4) भयानक बुखार को उतारने हेतु एक ग्राम से तीन ग्राम सहदेवी के पंचांग की मात्रा लेकर काढ़ा बनाकर पीने से तुरंत लाभ करता है।
(5) मूत्र सम्बन्धी रोगों के लिए जैसे बार – बार पेशाब जाना,जननांगों में जलन,खुजली आदि को दूर करने के लिए एक ग्राम सहदेवी के पंचांग को पानी में उबाल कर पीने से साड़ी समस्याएं दूर हो जाती हैं।
(6) सहदेवी के पंचांग का काढ़ा पीने से धातु सम्बन्धी दोष भी दूर हो जाता है।
(7) कृमि रोग में भी सहदेवी के बीजों को शहद के साथ सेवन करने से अत्यंत लाभ होता है।
(8) सहदेवी के पत्तों का रस और तुलसी के पत्तो का रस मिलाकर दिन में दो या तीन बार सेवन करने से पथरी समाप्त हो जाती है।
(9) पीले रंग के पुष्प वाले सहदेवी के पौधे का स्वरस पीने से कुष्ठ रोग में बहुत लाभ होता है।
(10) सहदेवी का पंचांग का सेवन मासिक धर्म से पांच दिन पहले और पांच दिन बाद तक सेवन करने से स्त्री का गर्भ निश्चित रूप से स्थिर हो जाता है।
(11) कंठमाला रोग में सहदेवी के जड़ को गले में बांधने से बाहर राहत मिलती है।
(12) मुख के रोग में सहदेवी के पंचांग का काढ़ बनाकर कुल्ला करने से अत्यंत आराम मिलता है।