” फिर से यदि जीने का अवसर मिले “
फिर मुझे जीने का यदि अवसर मिले।
फिर वही परिवेश फिर वह घर ।।
स्नेह की जिससे घनी छाया मिली।
फिर वही टूटा हुआ छप्पर मिले।।
टूटे छप्पर से गिरते बूंदों की मस्ती।
खेलते भाई – बहनों के साथ की गश्ती।।
गांव के खेत – खलिहानों की आँख मिचौली।
दोस्तों के साथ घरों की लुकाछिपौली।।
रेतों के घरोंदे बनाना फिर बिगाड़ना।
दूसरों के बिगाड़ने से रूठ जाना।।
पेड़ों की छाँव के झुरमुटों में झूले झूलना।
कच्ची इमली,आम,बेर,बबूल की गोंद खाना।।
नदी नालों में बेखौफ नहाना और घंटों तैरना।
ताल तलैया में मछली पकड़ने का अद्भुत आनंद।।
दोस्तों के साथ लड़ना झगड़ना,रोना,रूठना मनाना।
जीवन में यदि फिर एक बार अवसर का मिलना।।
बात सीधे मुँह न की जिसने कभी।
फिर वही कोमल हृदय पत्थर मिले।।
उन दुःखों को सह के कितना सुख मिला।
जो अभावों में मुझे अक्सर मिले।।
फिर उसी से करने हैं मीठे सवाल।
जिन सवालों के नहीं उत्तर मिले।।
फिर मुझे जीने का यदि अवसर मिले।
फिर वही परिवेश फिर वह घर मिले।। “