पुनर्नवा का पौधा

                                                                           पुनर्नवा का पौधा

पुनर्नवा एक अत्यंत उपयोगी,लाभकारी औषधीय पौधा है,जो लगभग सम्पूर्ण भारत में पाया जाता है। पुनर्नवा का पौधा खासकर वर्षा ऋतु में उगने वाला पौधा है,जो दो लाल एवं श्वेत रंगों में पाया जाता है। इसका वानस्पतिक नाम ” बोरहाविया डिफ्यूजा “ है। इसे कई नामों से जाना जाता है। यथा – संस्कृत में पुनर्नवा,विशाखा,श्वेतमूला,दीर्घपत्रिका,चिराटिका,वर्षाही,घनपत्र आदि। हिंदी में लाल पुनर्नवा,सांठ,गदहपुर्ना,कन्नड़ में सनादिका,गुजराती में राती साटोही,बसेडो,तमिल में मुकतै,तेलगू में अतिकामामिदि,बंगाली में पुनर्नोबा,मराठी में घेंटुली,मलयालम में थाजूथमा आदि। वास्तव में यह वर्षा ऋतु में उगकर समाप्त हो जाता है ;किन्तु इसकी जड़ें समाप्त नहीं होती और फिर दुबारा उग आती हैं। इसी कारण इसे पुनर्नवा नामों से जाना जाता है। औषधीय जगत में पुनर्नवा को ईश्वर का एक वरदान माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि किडनी को यह फिर से नया बना देता है यानि किडनी के समस्त विकारों को दूर करने में अत्यंत कारगर औषधि माना जाता है। वैसे तो पुनर्नवा अन्य रोगों में भी अत्यंत लाभदायक है।

                                                पुनर्नवा के औषधीय गुण एवं उनके प्रयोग

(1) पुनर्नवा की जड़ का रस दो चम्मच में शहद मिलाकर सेवन करने से खांसी को दूर कर देता है।
(2) पुनर्नवा की जड़ के सेवन से पीलिया रोग को बहुत जल्दी दूर कर देता है।
(3) भूख न लगने की समस्या को पुनर्नवा का सेवन अत्यंत लाभकारी है।
(4) बहुमूत्र की समस्या में पुनर्नवा के पत्तों को पीसकर उसमें काली मिर्च मिलाकर शरबत बनाकर सेवन करना अत्यंत फायदेमंद है।
(5) शारीरिक कमजोरी,शोथ,लिवर सिरोसिस,जॉन्डिस,रक्त अल्पता में पुनर्नवा के पत्तों का रस अत्यंत अमृततुल्य होता है।
(6) पांच से सात ग्राम पुनर्नवा के पंचांग का काढ़ा के सेवन से जिनको खाया – पीया न लगता हो उसमें अत्यंत गुणकारी सिद्ध होता है।
(7) पुनर्नवा मूल,अश्वगंधा एवं मिश्री मिलाकर सेवन करने से शारीरिक कमजोरी बहुत जल्दी दूर हो जाता है।
(8) पुनर्नवा पाण्डु,हृदय रोग,शूल,रक्त प्रदर,अतिसार,रक्त विकार,उदररोग में काफी लाभदायक है।
(9) श्वेत अपराजिता मूल,श्वेत पुनर्नवा मूल एवं जौ को समान भाग लेकर जलाकर काजल बनाकर नेत्रों में अंजन लगाने से नेत्र शुक्र रोग दूर हो जाता है।
(10) पुनर्नवा मूल को महिला के दूध में घिसकर आँखों में लगाने से नेत्र शूल एवं आँखों की अन्य समस्या में लाभ मिलता है।
(11) पुनर्नवा मूल के साथ पिप्पली मिलाकर अंजन करने से रात्रि अंधता रोग दूर होता है।
(12) पुनर्नवा मूल को भृंगराज के रस के साथ घिसकर लगाने से नेत्र कण्डू रोग में बहुत फायदा होता है।
(13) पुनर्नवा के पंचांग के रस में हरड़ की दो – तीन ग्राम चूर्ण मिलाकर पीने से कामला रोग ठीक हो जाता है।
(14) पुनर्नवा के पंचांग के काढ़ा के सेवन से गुर्दे की समस्या को बहुत जल्दी दूर कर देता है।
(15) पुनर्नवा के स्वरस को योनि में लगाने से योनि शूल समाप्त हो जाती है।
(16) पुनर्नवा के पत्ते एवं अपामार्ग की टहनियों को पीसकर बिच्छु के दंश स्थान पर लगाने से विष बहुत जल्दी दूर कर देता है।
(17) दो ग्राम सफ़ेद पुनर्नवा मूल को दूध के साथ या पान के साथ सुबह – शाम सेवन करने से चौथिया ( चातुर्थिक ) ज्वर का नाश हो जाता है।
(18) दो ग्राम पुनर्नवा मूल को गाय के दूध के साथ सेवन करने से शारीरिक बल की वृद्धि होती है।
(19) पुनर्नवा के पत्ते का रस 100 मिलीलीटर,मिश्री चूर्ण 200 ग्राम एवं पिप्पली चूर्ण 10 ग्राम सबको मिलाकर पकाएं और जब चाशनी के रूप में बदल जाये तो एक कांच के बोतल में रख लें और इस शरबत की 5 – 6 बूंदें बच्चों को दिन में दो बार चटाने से खांसी,श्वसन सम्बन्धी समस्या,फुफ्फुस की समस्या आदि अत्यंत शीघ्रता से दूर हो जाता है।
(20) पुनर्नवा,हरड़,बकली देवदारु एवं एरंड के बीज को समान मात्रा में लेकर पीसकर सूजन पर लेप लगाने से सूजन बहुत जल्दी दूर हो जाता है।
(21) पुनर्नवा का काढ़ा पेशाब की जलन,एवं मूत्र मार्ग के संक्रमण को बहुत जल्दी दूर कर देता है एवं साथ ही उत्पन्न ज्वर का भी नाश हो जाता है।
(22) पुनर्नवा का काढ़ा पीने से नींद न आने की समस्या दूर हो जाती है।
(23) पुनर्नवा मूल एवं सोंठ को बकरी के दूध के साथ पीसकर योनि में लेप करने से योनि की सूजन का नाश हो जाता है।
(24) स्वेत पुनर्नवा मूल को तेल में पकाकर पैरों की मालिश करने से वाट रोग से उत्पन्न दर्द दूर हो जाता है।
(25) पुनर्नवा मूल को छाछ के साथ पीसकर स्तनों पर लेप करने से स्तन की घाव या विद्रधि दूर हो जाता है।

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