सुन्दर कविता
गुजर रही है जिंदगी 
ऐसे मुकाम से 
अपने भी दूर हो जाते हैं,
जरा से जुकाम से !
तमाम कायनात में ” एक 
कातिल बीमारी ” की हवा हो गयी,
वक़्त ने कैसा सितम ढाया कि
“दूरियाँ ” ही ” दवा ” हो गई,
आज सलामत रहे 
तो कल की सहर देखेंगे 
आज पहरे में रहे 
तो कल का पहर देखेंगे।
सांसों के चलने के लिए 
क़दमों का रुकना जरूरी है,
घरों में बंद रहना दोस्तों 
हालात की मजबूरी है।
अब भी न संभले 
तो बहुत पछतायेंगे,
सूखे पत्तों की तरह 
हालात की आंधी में बिखर जायेंगे।
यह जंग मेरी या तेरी नहीं 
हम सब की है,
इस की जीत या हार भी 
हम सब की है।
अपनों के लिए जीना है,
यह जुदाई का जहर दोस्तों 
घूंट घूंट पीना है।
आज महफूज रहे 
तो कल मिल के 
खिलखिलायेंगे,
गले भी मिलेंगे और 
हाथ भी मिलाएंगे।
