कर्म से भाग्य बनता है
करो ईमानदारी से कर्म,ये है ईश्वर का विधान।
पूरा होता सारे कार्य,करते कृपा निधान।
जितना हो साधन उसी में, खुश रहते संत सुजान ।
संतोष धन श्रेष्ठ है,कह गए संत महान।
” मन ललचाये देखकर,तेरी चुपड़ी यार।
जी करता है ईश से झगड़ों बारम्बार।
झगड़ों बारम्बार,मुझे क्या समझ लिया है।
मेरी सूखी रखीं न घी संग साग दिया है।
रह रह आता याद वो दोहा बहुत सताए।
देख पराई चूपड़ी क्यों मन ललचाये।
मिलता है सौभाग्य से, राज,राजसी ठाट।
है कर्मों की श्रेष्ठता, भाग्य जोहता बाट।
भाग्य जोहता बाट,मान सम्मान मिले हैं।
कीचड़ में बहुदा देखा है कमल खिले हैं।
कह ” स्वामी ” बिन कर्म भाग्य का पुष्प न खिलता।
किये बिना प्रयास जगत में कुछ नहीं मिलता। “