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Joke Makes Your Days

लघुकथा हरित-सबक

डॉक्टर नगेन्द्र मेहता जी की रचना
                                               लघुकथा
                                                      हरित-सबक
डॉ.मेहता नगेन्द्र
इस बार मैं अपने पति राकेश और बच्चों के साथ
नया साल मनाने अपना ससुराली गांव आई। गांव का प्राकृतिक दृश्य मनोरम लगा। एक तरफ पहाड़ी
शिखर तो दूसरी तरफ नदी किनारे हरियाली मैदान।
बच्चे बेहद खुश दिखे।
अधेड़ उम्र की सासू मां मुझे एक भी घरेलू काम करने नहीं देती। इस पर राकेश काफी चिखते-चिल्लाते रहते। लेकिन सासू मां मुस्कुराकर इसे अनसुना करती रहती।
रात सोने समय राकेश मुझसे भी असहजता दिखलाता। वह कहता- “इस उम्र में मां को काम करते देखना अच्छा लगता है?कम से कम रसोई का काम तो कर लिया करती।”इस पर मैं कहती- “क्या इतना नासमझ हूं। मुझ पर पाप नहीं चढ़ता। मैं काम कैसे करती। रोज सुबह उठते ही, मां मुझे बच्चों की कसम देकर लाचार कर देती।”
वापसी से एक दिन पहले सासू मां अकेली सुस्ताती दिखी। पास जाकर पूछ बैठी-‘ मां, क्या कारण है कि राकेश आप पर गुस्साते रहते हैं।’ इस पर सासू मां मुस्कुराती हुई बोली-“कारण कुछ खास नहीं है, वह मुझे इस उम्र में काम करते देख नहीं सकता और मैं बिना काम किये बैठी नहीं रह सकती। वैसे तुम लोग रहने थोड़े आये हो। आती
हूं , खेत से चना की साग लेकर,लेती जाना।”
इतना कहकर सासू मां खेत की ओर फुर्र हो गई।
सासू मां का यह संवाद,नया साल का पहला हरित-सबक सा लगा।
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