लघुकथा  बूढ़ा पेड़ 

डॉ.मेहता नगेन्द्र
” पापा,अब आप पेंशनधारी हैं। हमारे पास पैसा
मत भेजा कीजिए।अपने ऊपर खर्च किया कीजिए।
आपने सुखी-सम्पन्न परिवार में भेजें हैं,अच्छी
नौकरी में हम दोनों हैं।आपका नाती भी पढ़-लिख कर विदेशी नौकरी में हैं। कई बार कह रही हूं,आप
मानते क्यों नहीं?”
इस पर मैं कुछ जवाब देता, इसके पहले प्यारी
नातिन डपट कर बोली-“नाना जी पिछले महीने में
बैंक खाते में पांच लाख रुपए क्यों भेज दिये? मेरे पापा को अच्छा नहीं लगा। आगे अब ऐसा मत कीजिएगा। देश में जहां भी जाइये हवाई जहाज से जाया कीजिए।”
दोनों की हिदायत सुनकर मैंने कहा- ” देखो
बेटे, पेड़ सिर्फ देना जानता है। अपना फल स्वयं नहीं खाता,और न फल को अपने पास काफी दिनों
तक रख सकता है। देना है,देने से मत रोको। माना
कि अब मैं बूढ़ा पेड़ बन गया हूं,फल कम लगता है, फिर भी देने का कर्म आगे भी दो-तीन साल तक चलता रहेगा।”
इस जवाब से बच्चे सहमत हुए कि नहीं, नहीं
जानता, लेकिन आप सुधीजन तो सहमत होंगे

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