बोध कथा
बहुत पुरानी बात है।एक राजा काफी समय तक राज सुख भोगते हुए जीवन जी रहा था।उसकी आयु अधिक हो जाने से बाल भी सफ़ेद हो चले थे।एक दिन उसने दरबार में उत्सव का आयोजन किया और उसमें अपने गुरुजी एवं अपने सभी सगे सम्बन्धियों एवं अपने मित्र देश के राजाओं को भी ससम्मान आमंत्रित किया।उत्सव में सबों का मनोरंजन एवं साथ ही रोचक बनाने हेतु राज्य की सबसे सुन्दर एवं सुप्रसिद्ध नृत्यांगना को भी बुलाया गया।
उत्सव प्रारम्भ हुआ और सबने नर्तकी के नृत्य का खूब आनंद लिया।नर्तकी पर सभी ने खूब सोने की मुहरें लुटाई।नृत्य सारी रात चलती रही और ब्रह्म बेला आयी तो नर्तकी ने देखा कि तबला बजाने वाला ऊंघ रहा है तो तबला बजाने वाले को सावधान करना जरूरी समझा क्योंकि यदि राजा को पता चल गया तो दंड का भागी बनना पड़ेगा। तबला बजाने वाले को जगाने के लिए नर्तकी ने एक दोहा पढ़ा –
” बहु बीती, थोड़ी रही , पल पल गयी बिताई ।
एक पल के कारने, ना कलंक लग जाए ।”
तबले वाला सतर्क होकर बजाने लगा , किन्तु उस सभा में मौजूद व्यक्तियों ने अपने -अपने ढंग से उस दोहे का अर्थ समझा।
* उस सभा में मौजूद गुरुजी ने दोहा सुना और गुरुजी ने अपने पास की सारी मोहरें नर्तकी को दे दी।
* दोहा सुनते ही राजा की बेटी ने अपना नौलखा हार नर्तकी को दे दिया।
* दोहा सुनते ही राजा के पुत्र ने अपना मुकुट नर्तकी को सौंप दिया।
यह सब देखकर राजा अचंभित होकर गंभीर चिंतन करने लगा और सोचा कि अचानक सबको क्या हो गया कि सब अपनी बहुमूल्य वस्तुएं नर्तकी को दे रहे हैं ।राजा अचानक सिंहासन से उठकर नर्तकी से कहा एक दोहे को सुनाकर तुम एक साधारण नर्तकी होकर सबको लूट लिया।
गुरूजी ने जब यह बात राजा से सूनी तो गुरूजी आंसू लिए हुए आँखों से बोले राजन आप इसको साधारण नर्तकी मत कहिये।ये तो अब मेरी गुरु बन गयी हैं, क्योंकि इनके दोहे से मेरी आँखें खोल दी हैं ।नर्तकी के दोहे यह कह रही हैं कि मैं सारी उम्र वनों में भक्ति और भजन में लगा रहा और अंत समय में नर्तकी का मुजरा देखकर अपनी तपस्या एवं साधना का नाश कर बैठा।नर्तकी ने मेरी ऑंखें खोल दी , अब मैं तो चला और अपना कमंडल उठाकर वन चला गया।
राजा की बेटी ने कहा – ” पिताजी !मैं युवावस्था में हूँ और मेरी आयु विवाह के योग्य हो गयी है किन्तु आप आँखें बंद किये हुए हैं , मेरी शादी की कोई चिंता नहीं है।मैं आज रात महावत के साथ भाग कर अपना जीवन बर्वाद कर लेने वाली थी।किन्तु नर्तकी के दोहे ने मेरी आँखें खोल दी और मुझे सुमति दी है कि जल्दीबाजी मत कर कभी तो तेरी शादी होगी ही।क्यों अपने पिता को कलंकित करने पर आमदा है ?
युवराज ने कहा – ” पिताजी ! आप वृद्ध हो गए हैं , फिर भी मुझे राज नहीं दे रहे थे।मैंने आज रात ही आपके सिपाहियों से मिलकर आपको मार देने की योजना थी।किन्तु नर्तकी के दोहे ने मेरी आँखे खोल दी और नर्तकी के दोहे ने कहा पगले ! ये तुम क्या करने जा रहे हो ये राज्य तो आज न तो कल तुम्हें ही प्राप्त होगा ? फिर जल्दीबाजी में पिताजी की हत्या का अपने सर कलंक क्यों लगाने जा रहा है।धैर्य धारण करो ।
जब ये सब बातें जब राजा ने सुनी तो उन्हें आत्मज्ञान हो गया और राजा के मन में वैराग्य आ गया।राजा ने तुरंत युवराज का राजतिलक कर राजा बना दिया और अपनी पुत्री को उपस्थित राजकुमारों में से किसी को भी अपनी पसंद से वरमाला डालने के लिए कहा।राजकुमारी ने अपने पिता की आज्ञा से सभा में मौजूद एक सुन्दर राजकुमार से शादी कर ली। राजा भी सब कुछ त्याग कर वन अपने गुरूजी के पास चले गए और वहीँ तपस्या करने लगा।
यह सब देख कर नर्तकी ने सोचा – ” मेरे एक दोहे से सभी सुधर गए , तो मैं क्यों नहीं ? उसी समय नर्तकी में भी वैराग्य का भाव हिलोरें मारने लगा और उसने भी निर्णय किया अब मैं अपना बुरा कर्म छोड़ कर भगवद भजन में समय बिताऊंगी।हे ! प्रभु मुझे पापों से माफ़ कर देना।
आज के परिपेक्ष्य में यह दोहा कितना प्रासंगिक है यह अपने मन में सोचने ,समझने एवं चिंतन के योग्य है –
” बहु बीती, थोड़ी रही , पल पल गयी बिताई ।
एक पल के कारने, ना कलंक लग जाए ।”