अतिबला या खिरैटी के पौधे

                                                                           अतिबला या खिरैटी के पौधे

अतिबला या खिरैटी अत्यंत औषधीय गुणों से युक्त पौधा है। इसे आयुर्वेद में बहुत उपयोगी ,चमत्कारी एवं बाजीकरण के रूप में प्रयोग होने वाली औषधि के रूप में जाना जाता है। यह एक जंगली पौधा है जो लगभग हर जगह पाया जाता है। अतिबला के पौधे की लम्बाई एक से दो मीटर की होती है। इसके फल कंघी की तरह होता है जो अत्यंत खूबसूरत होता है जिसकी सहायता से लोग घरों की दीवारों पर सुन्दर आकृति में गोल – गोल निशान भी बनाते हैं। वास्तव में यह अत्यंत बल प्रदान करने वाला पौधा होने के कारण ही इसका नाम अतिबला पड़ गया है।अतिबला को कई नामों से जाना जाता है जैसे –बला,अतिबला,नागबला,महाबला,कंघनी,कंघी,कंकतिया,कंकहिया आदि।अतिबला का वानस्पतिक नाम ” ऐबूटिलॉन इंडिकम ” है। अतिबला में काफी मात्रा में म्यूसिलेज पाया जाता है और टैनिन एवं एस्पेरेगिन काम मात्रा में पाया जाता है।
                                                                               अतिबला के पौधे के औषधीय गुण

(1) अतिबला के पौधे की जड़ की छल के चूर्ण के साथ मिश्री मिलाकर सेवन करने से बार – बार पेशाब जाने की समस्या से मुक्ति मिल जाती है।
(2) अतिबला की ताजी जड़ की मात्रा 4 – 5 ग्राम का एक टुकड़ा लेकर उसे पानी के साथ पीसकर सुबह खली पेट सेवन करने से धातुक्षीणता ,प्रमेह,शुक्र का पेशाब के साथ जाना आदि अत्यंत शीघ्रता के साथ ठीक हो जाता है।
(3) अतिबला के बीजों को पीसकर चूर्ण बनाकर शहद के साथ सुबह – शाम सेवन करने और ऊपर से गुनगुना मीठा दूध पीने से महिलाओं को होने वाली श्वेत प्रदर यानि ल्यूकोरिया की समस्या से मुक्ति मिल जाती है।
(4) अतिबला के पौधे की जड़ का चूर्ण बनाकर आधा चम्मच गुनगुने मीठे दूध के साथ सेवन करने से शारीरिक कमजोरी दूर हो जाती है और शरीर सुडौल होकर बल, वीर्य एवं तेज से युक्त हो जाता है।
(5) अतिबला के पंचांग को मोटा पीसकर रख लें और 5 से 10 की मात्रा एक गिलास जल में उबालें और एक चौथाई शेष रहने पर ठंडा कर छानकर आधा एक कप दूध मिलकर सेवन करने से बवासीर में खून आना बंद हो जाता है।
(6) मासिक धर्म के रुक जाने या अनियमितता की समस्या पर अतिबला,मुलहठी,कटेरी की जड़ ,नागकेशर की छाल दूध में पीस कर घी के साथ सेवन करने से मासिक धर्म शुरू हो जाता है और अनियमितता भी समाप्त हो जाती है।
(7) अतिबला के जड़ का काढ़ा सुबह – शाम पीने से पेशाब के साथ खून का आना बंद हो जाता है।
(8) अतिबला, कंटकारी,वासा के पत्ते एवं अंगूर समान भाग लेकर काढ़ा बनाकर उसमे मिश्री मिलाकर पीने से गीली खांसी दूर हो जाती है।
(9) अतिबला के पत्तों का काढ़ा बनाकर दिन में दो या तीन बार कुल्ला करने से मसूड़ों का सूजन व ढीलापन ठीक हो जाता है।
(10) अतिबला के बीजों का सेवन शरीर को शीतलता प्रदान करता है और कामेच्छा को बढ़ाने वाला होता है। इसके अतिरिक्त वीर्यवर्धक,बलकारक,वात – पित्त नाशक होता है।
(11) अतिबला ज्वरनाशक,कृमिनाशक,विषनाशक,पौष्टिक एवं गर्भस्राव को रोकने में अत्यंत सहायक होता है।
(12) अतिबला के तेल का प्रयोग दर्द को दूर करने के लिए उत्तम माना जाता है ,इसके साथ ही आमवात,जोड़ों के दर्द,वात विकार के दर्द को भी दूर करने में अत्यंत कारगर है।
(13) अतिबला की पत्तियों की लुगदी बनाकर फोड़े फुंसियों पर लगाने से बहुत जल्दी ठीक हो जाता है।
(14) जहरीले जानवरों ,बिच्छू ,ततैया आदि के काटने पर अतिबला की जड़ घिसकर लगाने से जहर का नाश हो जाता है।
(15) अतिबला के पौधे के पत्तों का काढ़ा बनाकर पीने से खूनी बवासीर,सुजाक,प्रदाह,मूत्राशय में होने वाली जलन,पित्त के कारण होने वाला आमातिसार आदि बहुत जल्दी ठीक हो जाता है।

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