एक नारी की करुण व्यथा
एक नारी की पुकार —
क्या घूर रहे हो ?
वक्ष मेरे ?
लब मेरे
या कमर मेरी ?
इन्हें देख कर
उत्तेजित हो रहे ?
क्या मन कर रहा
मुझे दबोचने का ?
नोचने – खरोचने का ?
एक बात पूछती हूँ
सच -सच बताना
तुम्हारे घर में भी तो
खूबसूरत ,सुन्दर – सुडौल वक्षों वाली
कई जोड़ियाँ होंगी
क्या उन्हें भी
ऐसे ही
भूखे भेड़ियों की तरह
घूरा करते हो ?
क्या उन्हें भी देख
अपनी लार टपकाते हो ?
वासनाएँ चरम पर
पहुँचती हैं तुम्हारी ?
आसानी से न
मिल पाने पर
हिंसक हो जाते हो ?
क्या हुआ ?
क्रोध आ गया ?
खून खौल
गया ?
इज्ज़त पर
आँच आ गई ?
तुंहारी आँखों में
अपने लिए
प्रेम चाहती हूँ
सम्मान और स्नेह
मर्यादा चाहती हूँ
वासना नहीं
कोई हिंसा नहीं
निश्छल,निःस्वार्थ प्रेम
मैं केवल और केवल
मर्यादा,प्रेम ,स्नेह,सम्मान,इज्ज़त
और कुछ भी नहीं —-
और कुछ भी नहीं —।