बबूल या कीकर का पेड़
बबूल या कीकर सम्पूर्ण भारतवर्ष में पाया जाने वाला एक प्रसिद्ध कांटेदार पेड़ है। इसका वैज्ञानिक नाम Acacia nilotica है।बबूल का पेड़ अफ्रीका महाद्वीप में भी पाया जाता है।वैसे तो इस पेड़ को निरर्थक माना जाता है ;किन्तु औषधीय गुणों की दृष्टि से यह एक अद्भुत गुणकारी पेड़ है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार बबूल के पेड़ पर भगवान् विष्णु का निवास माना जाता है,इसलिए लोग इसकी पूजा भी करते हैं एवं अत्यंत शुभ मानकर अपने घरों में या आसपास लगाते हैं। इस पेड़ की जड़,छाल,तना,पत्तियां एवं फलों का औषधीय प्रयोग होता है। वास्तव में बबूल कई बीमारियों को बड़ी सहजता से दूर करने में कारगर है। बबूल का औषधीय प्रयोग निम्नलिखित है –
(1) बबूल की हरी टहनियों का दातुन करने से दाँत मजबूत, स्वस्थ एवं चमकदार हो जाता है।
(2) बबूल की छाल का काढ़ा पीने से पेचिश,आंव,बिलरुबिन बढ़ा हुआ,संग्रहणी,भूख कम लगना,अपच की समस्या,लिवर की समस्या,आँतों का अल्सर एवं आँतों का घाव शीघ्रता से दूर करने में अत्यंत कारगर है।
(३)बबूल की छाल एवं उसमें मुलेठी,आंवला मिलाकर काढ़ा बनाकर पीने से कब्ज,संतानहीनता,अनियमित मासिक धर्म की समस्या से बहुत जल्द ठीक हो जाता है।
(4) कीकर के गोंद का लड्डू बनाकर खाने से शारीरिक दुर्बलता,प्रमेह,मर्दाना ताकत की कमी,प्रदर,शुक्रहीनता,धातुहीनता आदि रोगों का समूल नष्ट करने में अत्यंत उपयोगी है।
(5) बबूल की कच्ची छाया शुष्क फलियों को पीसकर सेवन करने से सभी प्रकार के प्रमेह,प्रदर,मासिक धर्म की अनियमितता,शारीरिक दुर्बलता,शुक्रहीनता ,धातुहीनता,मर्दाना ताकत की कमी आदि को दूर शीघ्रता से करने में अत्यंत कारगर है।
(6) बबूल की छाल का काढ़ा पीने से मुंह की दुर्गन्ध,दाँतों का हिलना,मसूड़ों में सूजन आदि दूर हो जाता है।
(7) बबूल की छाल के साथ अश्वगंधा,चित्रक,मुलेठी एवं सूखा आंवल का काढ़ा बनाकर पीने से औरतों में शिथिलता,प्रसूत जन्य रोग जो बच्चा होने के उपरांत होता है ,उसे बहुत शीघ्रता से दूर कर देता है।
(8) बबूल की कच्ची छाया शुष्क फली का चूर्ण पीलिया होने पर 4 दिनों के सेवन से दूर हो जाता है।
(9) बबूल की छाल का काढ़ा बनाकर पीने से महिलाओं को अनियमित मासिक धर्म,योनि रोग,सफ़ेद पानी,कमर दर्द,सूतिका आदि रोगों को नष्ट करने में अत्यंत कारगर है।
(10) नेत्र रोग में बबूल के नरम कोमल पत्तों को पीसकर रस निकालकर एक या दो बून्द आँखों में डालने से या स्त्री के दूध के साथ आँखों पर लेप करने से आँख की पीड़ा एवं सूजन दूर हो जाती है।
(11) बबूल की कच्ची छाया शुष्क फलियों को चूर्ण बनाकर सुबह शाम सेवन करने से अस्थि भंग या टूटी हड्डी शीघ्रता से जुड़ जाता है।
(12) बबूल के पत्ते एवं छाल के साथ बरगद की छाल समान भाग लेकर पानी में भिगों दें और कुल्ला करने से गले के रोग दूर हो जाते हैं।